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राजविद्या। करने वाला जल्दी जल्दी न भुगत कर समाप्त नहीं करता है | परत् संचय करता है वह अवश्य दीर्घायु (बड़ी उमर) होता है । जबतक संचित कर्म बाकी रहते हैं और संचय बढ. ता है जबतक शरीर की आयुस की अवधी बढती है | ये मनुष्य ही कर सकता है और मनुष्य के ही आधिन है। न तो जलदी सुगत. ता है और न समाप्त करता है वह योगी है । उसकी आयुस के वर्षों की संख्या बड़ जाती है । पथ्य से अपणा आपा हात मे रखने से नियम से और योगा भ्यास से अनन्त सिधि सहित शरीर अमरता को पाता है ये वैश्य और यागी के हात मे है ॥
श्रीमत्परम पवित्र सोम पाठ १० शिल्पषिधालय चिकित्सालय शरीर व्यच्छेदालयानाथालय वायुः जलशुद्धि पुर स्वच्छतादि प्रजा कार्याणि ॥ यद्रा
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