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राजविद्य ।
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[ ८३]
भाषार्थ
श्रीमत्परम पवित्र सोम पाठ ९
जमा खरच देखना चाहिये | जमा और खरच दोन देखना चाहिये || जमाते खर जहां तक संभव हो जादा नहीं || हर समय थोड़ा वा जादे सुख के साथ संग्रह करना चाहिये | थोडेसे घणे की रक्षा करनी चाहिये || इस जगत में धन की तीन गति होती है दान उत्तम श्रेष्ठ गति है जिससे अखण्ड प्रकाश मान यश (कीर्ति) और हमेश का सुख मिलता है । मध्यम गति भोग है | और नीच गति नाश है || स्वार्थ सुख भोंग की अधिकता आयुम को क्षय करती है । प्रकृति ( कुदरत ) नियम से पूर्व प्रारब्ध संचित्कर्मानु सार शरीर कम जादे सुख दुःख भोग के साथ पाता है | इन स्वार्थ सुख भोगों को जलदी जलदी अधिक अधिक भोगता हुवा और संचय न करता हुवा शरीर बाकी न रहता हुवा मोत ही को पालता है || दीर्घायु बड़ी उमर की इच्छा
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