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राजविद्या। [७६ ] न्सर्वोत्तमश्च मन्यते ॥ मन्सोत्साहः संवर्द्धयः तैस्परमोलाभः ॥ एते नवान. धयः॥नवकोषा-अन्न वस्त्र मणिमुक्ता. द भण्डार धनं तैल घृत रसादि तृणा गार विविध वस्तव शस्त्रास्त्र युद्ध सामग्रय ॥ राजविद्योपशेन स्वार्थ नैराश्यमश्रद्धां चाप्य पौरुषं परित्यजते ॥ सर्व स्वं जयाति ॥ विना प्रजाहितार्थ रक्षा न्याय प्रजाभ्यः धनमुपार्जनं निस्संतानं भूत्वा निर्ययान्ति दुर्घटनमाप्नोति आयुश्वाल्प।
भाषार्थ
॥ श्री मत्परम पवित्र सोम पाठ ८ ॥ धर्म के साथ पेदाश करने के उपाव वहीं राजा के नव खजानें है ॥ पृथिवी जलादि से परिश्रम करने से सवासो लाभ प्राप्त होते हैं । खेती से
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