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राजविद्या। दूसरे सेना नायक राजविद्या अभाव से सभाव से रहने की इच्छा करते है यदि वह भूमि उत्तम पथरना बोहत सामन्तों (वीर क्षत्रियों) के अधिन में गालकी भाव के माथ न हो और जो बोहत सामन्तों मृभ्याधिपतयों के नीचे दृढ कोये हुवे को कोई हरने की इच्छा न करता है न हर स. कते हैं थोड़ा के अधिकार में ले सकते हैं पृथिवी सब भोग एश्वर्य की देने वाली को आक्रमण करते है इसी तरह अधिकाधिक के अधिकार को देखकर पीछे जाते हैं। बल से रक्षा बुद्धि से प्रयोजन न्याय है। रक्षा न्याय को हमेशा देखता रहे वह राजा मन्छाफल को पाता है और रक्षा न्याय में ढीलापल करता है तो कल्प वृक्ष के फल को पराये ( दुसरे) हर लेते है और वृक्ष को काट भी डालते है ।
श्रीमत्परम पवित्र सोम पाठ ५ समीप वर्ग वा सत्संगति येभ्यः मंत्री सेनापतिः राज्यदूत ॥ समीप वर्तिनां
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