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राजविद्या! ते ॥ बुडिकर्मानुसारिणी वर्तमाना तथैवच॥ तस्मात्कर्म शुद्धारयेत् पुरुषो हिसुविचारतः सुखंतु पुरुषार्थन ना. न्यथाचान्यकर्मणा ॥
भाषार्थ ___ स्वभाव परिमाणे चराचरमे उच्चनीच यो. नियों मे जन्म पाता है ॥ बुद्धिकर्मानुसारिणी है चाहे इस जन्म के हो चाहै पूर्वके । इस वास्ते पुरुष अपने अच्छे विचारों से कर्मों को शुद्धारे ।। सुखतो पुरुषार्थ है न और तरह से और और कर्मों से ॥
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