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राजविद्या। [६] मेरे को भी अपने वशकर सकता है, यदि स्वार्थ सुख ओर सेथिल्यकी अधिकता को छोड़ता हुआ शुद्ध भाव से पुरुषार्थ करता है वह सब समय सतयुग ही वर्तता है और सबको साधलेता है ॥ शुद्ध ज्ञानवाला मनुष्य शक्ति पुरुषार्थ से जो जो काम चाहता है (चिन्तवन ) करता है उनको वह हासल करलेता है । सब उपयोगी अभ्यासमें परिपूर्ण योग्यता से सब सिधियों को अपने आप पा लेता है ॥
श्रीमत्परम पवित्र सोमपाठ १ रा. ज्य सम्भवः सेवक्षत्रियाणां पदात्रिंश लक्षणाः॥
शुद्धभावेन मनुज शरीरं प्राप्यते तस्मिान्वचारशक्ति विशेषः (आधिकः) तया च शक्तेः सुमतेर्विशुद्ध ज्ञानं स. म्वाप्यते ॥
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