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राजविद्या ।
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ईश्वर ने कहा- बल और बुद्धि और इन दोनुका योग बल का प्रयोजन रक्षा है और रक्षा करने मे उत्साह हो रक्षा का योग इस तरह है-प्रति समय शरीर इन्द्रियों को अपने वश में रखे इसमे बल पोरुष होता है और बल पोरुष होने से परहेज के साथ कसरत करे और मेहनत का अभ्यास रखे इसी तरह वाहनों का और अस्त्र शस्त्रों के अभ्यास में प्रीति रक्षा के वास्ते रखे तिस पीछे प्रजा के शरीर प्राण स्वातंत्र और द्रव्य की रक्षा करे मालकी भाव के साथ और इसी तरह उप योगी चराचर की भी ।
अच्छी बुद्धि से प्रयोजन न्याय है और न्याय करने में उत्साह हो न्याय करने का योग इस तरह पर है - अपनी भावना शुद्ध रखे ब्रह्म याने अपने वोर्य की रक्षा रखे- पुरुषार्थ धर्म मर्याद स अपनी जाति से विवाह करे एक्यता भाव रखे आपस मे सह प्रीति और सहायता करता रहे अपनी मातृ देश भूमि से प्रीति और उसका शुभ
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