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राजविद्या। रहैं । राजावों के लिये राज्य इस लिये संपा गया है के वे लोक हितैसी होकर रहै और प्रजा. वों को गजी रखे और उनकी वृद्धि के माफिक चलने वाला हो न की अपने ही भोगों में लगा हुवा रहै। राजा अपने पुत्र संतति से भी विशेष प्रजा की रक्षा करता रहै प्रजा को राजी रखने वाला राजा है ॥ जो राजा अपने कामों से वा कर्मचायों के विपरीत कामों से वा उनके विपरीत कामों को न देखकर प्रजा को दुःख पोचाता है वह निश्चय नर्क को जाता है। हर समय कर्मचारियों की योग्यता देखता रहे ॥ क्षात्र विद्या के अनु. सरण को छोड़ के जो प्रजा से धन लेता है वह निस्संतान होकर नीच गति को पाता है । इस तत्व के सार को जानता हुवा समस्त प्रजावों को अपने पुत्रों से विशष पालता रहै उस राजा का राज्य स्थिर बना रहता है और वह राजा बहुत काल तक बहोत संतति (परिवार ) के साथ राज्य सुख शान्ति से करता है ।
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