________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
राजविद्या। [४] लेव रचितः स्वार्थिक्या बुद्धया कार्य विधानेनरस्याल्पतरोलाभोल्पञ्च सुख म् ॥ संजायते मुहुर्मुहु निकृष्ट (कपूय ) योनिषु जन्मापि एवमेव पारमार्थिक्या बुद्धयाच महाँल्लाभोनन्तसुखमाण्डितश्च महयोनिषु जन्माप भवति ।।
भाषार्थ मायाने मनुष्य को अपणी इच्छा माफिक चलने वाला रचा है || स्वार्थिक बुद्धि से कार्य करने से थोड़ा लाभ थोड़ा सुख होता है और बार बार नीच योनियों जन्म लेता है इसी तरह पारमाथिक बुद्धि से महान लाभ अनन्त अखंडित सुख मिलता है और बार बार उच्च योनियों में जन्म पाता है ।
स्वभाव परिमाणेन स्थावरे जंग मेषूचनांचेषयानिषुजॉवो संजाय.
For Private And Personal Use Only