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राजविद्या। मनुष्य विशेष करके ठीक करसक्ता वा विगाड़ सक्ता है ये मनुष्य के आधीन (हत्यार) में है।
यदि स यत्किञ्चित्सु सम्पाद्यं दुस्सम्पायं वा कर्तुमिच्छन्नास्ति तस्य किमपि दुष्करं यथाऽसौ नरः रचार्थिक कर्मरतो भूत्वा स्व सर्वस्व विनाशयेत तथैव पारमार्थिकेषु कृत्येषु रतश्चेत स्वकीयं सर्वस्वं संसाधयेत् ॥
भाषार्थ यदि मनुष्य कुछ भी शुधारना चाहता है वा विगाड़ना चाहे तो कुछ भी मुस्किल मनुष्य के लिये नहीं है जैसे ये मनुष्य स्वार्थिक कर्मों में लगा हुवा अपना सर्वस्व विगाड़ लेता है इसी तरह पारमार्थिकामों में लगा हुआ अपणी सारी बातें शुधार लेता है ॥
मायया मनुजः स्वेच्छाचरण शी
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