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राजविद्या। [२१] राजसी और सात्विक जीव वैश्य है उनका श. रीर गणित और द्रव्य है उस में खेती गो सेवा और वाणिज्य मेरा ही प्रकाश है उस में वही सत्य धारणा मान योग्य है। तामसी जीव शूद्र है उनका शरीर सवा का काम है और वही मेरा प्रकाश है इस लिये शूद्र पालने योग्य है।
इस विद्या से पराक्रम और सुमति के शुद्ध ज्ञान की प्राप्ती होती है जिस से धारणा शुद्ध होजाती है और शुद्ध धारणा से सुकृत करने में पुरुषार्थ होता है और एसे पुरुषार्थ से भावना शुद्ध होजाती है और भावना शुद्ध हो जाने से मनुष्य कोटी में उच्च कोटी क्षत्रिय जाति में जीव जन्म पाता है।
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