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राजविया ।
वुच्चायां क्षत्रिय जाती जीवो जन्म सं
प्राप्नोति ।
भाषार्थ
राजा प्रजा दोनू ही एक स्त्री पुरुष रूप धारे हुवे है और वह मेरे ही आत्मा के भाग है वह दोनू जुदि जुदि मूर्ती जगत की उत्पत्ती के वास्ते है उन दोनू में जीव राजा और शरीर प्रजा है और उन में बल बुद्धि मेरा ही प्रकाश है जो राज विद्या रूपी ज्ञान की आंख से देखता है वह निकंटक राज्य करता है और फेर परमपद पाता है ।
राजसी जीव क्षत्रिय और प्रजा पालन कर्म है वह प्रजावोंका मालिक है और न्याय रक्षा और राज्य करने योग्य है ।
सात्विक जीव ब्रह्म है उनका शरीर वेद शास्त्र है जिस में ज्ञान विज्ञान और आस्तिक भाव मेरा ही प्रकाश है और ब्रह्म को जानता है वही ब्राह्मण है और ब्राह्मण पूज्य और मान योग्य है ।
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