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राजविद्या।
[३४] - सर्वे हितार्थाय वायुः जलयोः शु. द्धिः॥ प्रतिशरीरे मनसात्मनश्च शुद्धिः तां समीक्षयः न्याय ॥
भाषार्थ सब के हित के लिये वायुः जलकी शुद्धिः प्रति शरीर में मनसा और आत्मा की शुद्धि न्याय के समय में देखना चाहिये ।
स्थूल शरीरम्य भोजनं सात्विक नियमित साधारणं चास्ति । सुक्षमस्य सदाचारः॥
भाषार्थ
स्थूल शरीर का भोजन सात्विक नियमित और साधारण है और सूक्षम का सदाचार है ।
स्थूल शरीरस्य ब्याधयो ज्वरः कासः क्षयादि विकारश्च तथैव काम कोद्ध लोभादयः सक्षमस्य ॥
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