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राजविद्या ।
[२७]
मोह से स्त्री संतती (परिवार ) और संबन्धियों का संग्रह हो और इन की रक्षा और दान कन्यावों का विवाह करके । अहंकारात्प्राणानां योगयुक्तेन संग्रहो पथ्येन च रक्षा दानं चेति युद्धे ।
भावार्थ
अहंकारों से प्राणों का योग युक्ति संग्रह करो पश्य के साथ और रक्षा करो और युद्ध में दान प्राणों का भी हो ।
समरे शौर्यम् युद्धिविक्रमः उपयोगीषु कार्येषु यथा योग्य तेजः धृतिः परिश्रमश्च ।
भाषार्थ
लड़ाई म शूरवीरता युद्ध में पराक्रम और उपयोगी कामों में यथा योग्य तेजी धीरज और परिश्रम करना ।
दानं देशे काले सुपात्रेषु वा कन्या दानं स्वजाति विवाहेन यथा योग्येन च।
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