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राजविद्या ।
[ २६ ]
अच्छे अच्छे शास्त्रों का अनुभव और एसे अनुभव
से शुद्ध धारणा चली जाती हैं | न्याय में तजरुबा ॥ जरूरी है || मातृ प्राकृत भाषा के अभाव से जगत सुखदायी धर्म की महाँ हानि होजाती है । धर्म के नाश से समूल नाश होजाता है ||
स्वदेश शुद्ध बलिष्ट भोजन परि वर्तनेन शरीरं पुरुषार्थं विहीनं कृत्वा धरया परि त्यज्यते ||
भाषार्थ
अपणा देशी शुद्ध बलीष्ट भोजन छोड़ने से शरीर पुरुषार्थ हीन करके पृथिवी उसको छोड़ देती है ||
वीरवेषं परिवर्तनेन स्व मनोगत विचार प्रेरणा परिवर्तते तेन शुद्ध भावनाऽपि परिवर्तनेन धनक्षयः सम्पद्यते सजीवात्मा जन्मान्यपि न स्वजातेः
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