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[२८] राजविद्या।
भाषार्थ दान देश देखकर समय देखकर और सु. पात्रों को देना इसी तरह कन्या दान स्वजाति विवाह करके यथा योग से देना।
क्षत्रियेश्वर भावाकाशवदुच्च तंच त्यागात् शनै शनै भ्रसंति।
भाषार्थ क्षत्रियों का मालकी भाव आकाश समान उच्च है तिसको छोड़ने से शनैः शनैः भ्रष्ट होजाते है।
मातृभाषा परित्यागेन चिरकालेन पूर्वजैरनुभूता दिब्य शास्त्रानुभवः तेन शुद्धा धारणा क्षीयते । न्यायेऽनुभवावश्यमेव । मातृ प्राकृत भाषाऽभावेन जगत्सुदायी धर्मस्य महती क्षतिर्जायते। धर्मेनष्टे समूलंच विनश्यति ।
- भाषार्थ मातृभाषा (देश बोली) छोड़ने से बहोत काल से पूर्व पुरुषों का अनुभव (तजरुवा ) और
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