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राजविद्या।
[१५] भाषार्थ इस सृष्टी की अवधी चवदे मन्वन्तर तक की है । हरेक मन्वन्तर में मनुष्यों की बल बुद्धिः कर्म और आयु में फरक पड़ता है और ये फरक स्वार्थ और सुख में पड़ने से होता है और ये स्वार्थ और सुख नीचि गति को लेजाता है और शास्त्र उनको उच्च गति में खींचता है जैसे सूर्य जल को।
एतच्छास्वावलंबी जनविषुलोके पूच्चपदं लभते एतद्विद्या पुरुषाणां क. माणि शोधयित्वा बलायुर्बुद्धिः संततिश्च संपदा संवर्द्धयति ।
भाषार्थ इस शास्त्र का अवलंबी जन तीन ही लोक में उच्च पद पाता है ये विद्या पुरुषों के कर्मों को शुद्ध करती हुई बल आयु बुद्धिः संतति (परिवार) और संपदा को बढ़ाति है।
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