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राजविद्या। की स्थिरता के लिये सृष्टी आरंभ में शिव शक्ति का संबाद हुवा वह तेज शक्ति सुमति मयि राज. विद्या पर पहला उपदेश है जिसको श्री विष्णु भगवान ने राजा विवस्वान से कहा फेर परम्परा से ये राजविद्या का योग चलता रहा वह समय समय में लुप्त प्रकाशित होता रहता है।
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राजविद्या। ॥ प्रथमोपदेश । ॥ प्रकृति स्वभाव नियम विद्या प्रशंसा ।।
अस्या सृष्टेश्वधिः चतुर्दश मन्वन्तर पर्यन्तःप्रति मन्वन्तरे मनुष्याणां बलबुद्धिःकर्मायुर्भेदो विद्यते स्वार्थ सुख लिप्सया स एवाधोगतिं नयति शास्वाणि च तमुर्डमाकृषन्ति यथा सूर्यों जलम्।
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