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[१२] राजविद्या। के उच्चभाव ( मालकी भाव ) रखे नीच विचार वा नीच भाव हरगिज न रखे नीच भाव से नीचा
और उच्च भाव से ऊचा। उच्च नीच भाव ही कारण है जेसा भाव वेसा फल ॥ ८ ॥ शिवाधङ्गी ये नाम बोद्ध करता है के अपनी एकही पत्नी को अधंग में रखे अदंग पुरुष और अर्द्ध स्त्री दोनू मिलकर एक अंग होजाता है और एक से जादा अर्द्धग स्त्री न बनावे एक ही स्त्री को अपने अग के माफिक रखे और इसी तरह अपनी प्रजा से सदा मिला रहे राजा मस्तक और प्रजा धड़ है ये दोनु मिलकर सामीप्य रहै और जहां तक होसके प्रजा के दुःखों को मिटाता रहै और प्रजा के साथ दुर्भाव कुछ भी न रखे ॥ ९ ॥ शिवा प्रीया ये नाम बोद्ध करता है के राजा अपनी एक ही विवाहिता स्त्री को प्रीय रख इसी तरह प्रजा का भी प्रीय बना रहे राजा अपने हृदे में कोमलता और मुख में मधुरता और अपने बान्धवों का संबन्धीयों का प्रजावों का और मेना
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