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राजविद्या। _पृथक् पृथग्विधानानाभान्त्यनेक रचना जन्तूपजन्तुनां सुख दुःख तेषां कर्मानुसारेणैव देशोपरिपाटिनानुमारे णव पृथक् पृथग्धान राज्यानिच सरूपाणि स्वभावान् विविधा भाषाश्च एवमेव चाचरणं रीतिः मर्यादाश्चाह. मेव सृजामीति । नैतान्सवा-पृथग्भूता न्सहृत्यकी कर्तुकोऽपि समर्थः ।
भाषार्थ जुदी जुदी विधविध की अनेक भांति की रचना जंतु उपजंतुवों का सुख दुःख उनके कर्मा. नुसार और देश की परिपाटी के भी अनुसार जुदा जुदा धर्म जुदा जुदा राज्य जुदा जुदा म. रूप जुदा जुदा सभाव जुदी जुदी बोलीयां इसी तरह जुदि जुदि रितां मर्यादा मैने रची है इन जुदे जुदे को एक करने की सामर्थ किसी की भी नहीं है।
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