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राजविथा। [१७] प्रजाषु सभ्यता प्रचारः समुन्नति मार्ग च शिक्षणाया।जगद्धानि कराणि विषयाणि कार्याणि कुर्वन्ति निरोद्धब्या परंताषां स्वधर्मे ब्यवहारे प्राचीन मर्यादायांच हस्ताक्षेपो न विधेया।येन केन साम्राज्येऽधिकारेऽधिकाधिक माण्डलिका राजानः स सम्राट सुदृढतां प्राप्नोति । यत्र तत्रैव जन समूहः तस्य रक्षा न्याय हितार्थाय पृथक् पृथक्राज्य स्थापयामि तस्मान्माण्डलिकानि रा. ज्यानि पृथिवी पर्यन्तं बोभूयन्ते न क दापि नाशं जायते।
भाषार्थ प्रजाओं में सभ्यता का प्रचार और उन्नति मार्ग शिखलाना चाहिये । जगतहानि कारक कामों के करने से रोकना चाहिये परंत उनके धर्म व्य. वहार और प्राचीन मर्यादों में हात न डालना
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