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राजविद्या। प्रजाओं में प्रति सेकडे एक धर्म उपदेशक, एक वेद्य तीन शिल्प कार्यों में, चार वेद यज्ञ जानने वाले ईश्वर उपासक, प्रति सइकडे दश क्षत्रिय रक्षा के वास्ते, पांच शूद्र हुकम मुजिब काम चाकरी करने वाले, सब अन्न शाक औषघालय आदि खेती वाणिज्य गौ रक्षा कार्यों में चालीस, छतीस जगत के अवश्य उपयागी खान धातु, लकडी, पत्थर, मिट्टी, हाड, खाल, कपास लोम, रुहां, बल्कल, केश आदि विविध कार्यों के लिये ।
क्षत्रियाणांभूदाय विभागे विवादे समुत्पन्ने भूमिः विभजने न्यायोऽष्टया प्रोच्यते । सामन्तानां प्रजागणेषु सभ्य व्यक्तिजनानां सम्मतिन्विष्या अधि. कायां सम्मतौन्यायं परि समाप्तेि ॥१॥ वादि प्रात वादिनां राजविद्या ज्ञातृत्व. स्य तदनुसार बल बुद्धोर्योगयतायाश्च
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