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राजविद्या ।
जातेश्व स्थितिः । उन्नत पदकांक्षिणा जना वृधिमिच्छता राजविद्योपदेशेन शक्तेः सुमते विशुद्ध ज्ञानं संवाप्यते ताभ्यां रक्षा न्यायः स्वाधिकारे क्षत्रियाणां स्थिति |
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भाषार्थ द्वितीय शिक्षा-स्वार्थ सुख की संभाव से अधिक्ता सारे शुभ कार्यों को और हमेश की स्थिरता को नाश करने वाले दोनू प्रबल शत्रुव को मारकर समस्त आपस में शुद्ध भावना से शुद्धधारणा विना न प्रीति न सुख और न बल हे इनके विना सब नाश को प्राप्त होजाते हैं और किसी व्यक्ति वा जाति की स्थिति नहीं है। उच्च पदकी इच्छा करने वाले अपनी वृद्धि चाहने वाले राजविद्या के उपदेश से बल बुद्धि के शु ज्ञान को प्राप्त करे जिनसे रक्षा न्याय अपने अधिकार में होना क्षत्रियों की स्थिति है ।
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