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राजविधा ।
द्वितिय माता के लिये उसके पोषण से लेकर सो अंश तक । तीसरी माता के लिये उसके पोषण से लेकर दोसो अंश तक । चोथी माता उसके पोषण से लेकर तीन सो अंश तक | तिसके उपरांत कम कम । माता की बेटी अपणी बेटी भूमि मे भाग पोषण के लिये घरादि मे चर संपत्ति मे पोषण से आधे अंश तक । माता की बेटी अपणी बेटी तथा इन दोनु को संतति विभाग देने में अपनी संतति की तरहे वर्ते जाते है ! अपने पुत्र अभाव से माता की बेटी अपणी बेटी और इन दोनु की संतति भी अपनी संतति की तरह मानने योग्य है सब विभाग देने में गोद लिये हुवे पुत्र की तरह ।। सिंम चिन्ह को न हटाना चाहिये । विद्या ज्ञान का संग्रह है: ज्ञान को समुच्चय सद्विद्या मनुष्य को उच्च पद पांचाती है और सब सुख देने वाली है इसी तरह अमद्विद्या नर्क में गेरती है || स्वाधीन परिपूर्ण सुख सहित पोषण करना । सब काम अपने अधिकार
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