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[६.]
राजविद्या। सदां की ओर सभापतियां से राजा के सामने परिक्षा हो । एक कोष से निसान को बेध देना वा तखार के एक वार से कवछ को छेद देना । स्वयं ( अपणे आप ) जोते पर ब्रह्म का तेज ज्ञान के सार को देखना और अपणी आत्मा का दिव्य ज्ञान । ४ दान में शक्ति प्रतिः यशो. धनः यशहिधन है ५ सन्तानां की अधिकता ६ वीरता से ओछे शस्त्र से सिंह को मारना ७ इन सब में परीक्षा में उचे। योग्यता अधिक सम्बन्ध का पाश होना शान्त शुद्ध सदाचार मे दृढ चित में कृतामे देन योग्य है अधिक भाग परंत तत्वां से हीन को दुराचारी को दुष्ट दुर्जन क्रोधी को और नास्तिक को अधिक न दे। सब योगता की परीक्षा करनी चाहिये कम जादा योग्यता नुसार देना चाहिये । दाये के विभाग में न्याय में निर्पक्षता अवश्य होनी चाहिये विपरीत आचरण से न्याय हाथ सैनिक ले जाता है ओ दुसरों के हाथ मे चला जाता
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