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राजविद्या।
(४७) में रखना ३ वीरता ४ तेज ५ जगतहितार्थ पार. मार्थिक दान में उत्साह ६ शुद्धविचारशक्ति ७ धर्म से रक्षा न्याय करना ॥ ८ ॥ इन मातों से रोग रहित रहना १ सुख र शान्ति ३ स्थिति ४ सम्पत्ति ५ वृद्धि ६ और आयुप बधना सिखलाते हैं ॥ ७८ ॥ यथायोग युक्ति काम में लाना योग
शुद्धभावेन प्रतिदिन शस्त्रास्त्राणामभ्यासः सएक्शाक्तः तयारक्षा तयाच सुखम् उच्चभावन सर्वोपरीविद्याभ्यास तेन सुमतिः तयान्यायःन्यायेनशक्तिः सदा ईश्वरभावन पुरुषार्थ-शुद्धमा मर्ववृत्तान्तपरिज्ञ.नम् जगद्धिताय नारमार्थिक दाने समुत्साहः सएव स्थितिः शुद्धोचेश्वरभाव सरूप त्रिशूल त्रैलो. क्यं जयतुं शक्नोति ॥
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