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प्रकाशयति शुद्धोचेश्वरभावा १ यथा योगयुक्ति २ संयमः ३ शौर्य ४ तेजः५ जगद्धितार्थ पारमार्थिक दाने समुत्सा हः ६शुद्धविचारशक्तिः धर्मेणरक्षा ७ न्यायश्चेति ॥ ८॥ एतै सप्तः स्वस्ति सुखशान्तिः स्थितिः सम्पत्ति वृडिरा युश्च सम्वृधन ॥ यथायोगयुक्तिः प्रयो जनयोगः ॥
( भाषाथ)
प्रारम्भ में ( सरुमें ) अपणे इष्ट में प्रेम रखने से वा योगमाया प्रसन्न होती हुइ श्रद्धावान्क्षीत्रयों को देती है योग और माया से स्थिति ( परम्परा वंशका चलना ) योग क्षत्रियों के हृदेमें प्रकाश करता है शुद्धभाव उच्चभाव और मालकीभाव १ यथा योगयुक्त याने जैसीचाहिये वैसी तजबीज २ अपने आपेको वशमें रखना याने अपने आधीन
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