________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रोजविद्या ।२
[३५]
और सब अधिक सम्मति ( राय ) सब शहोजा. तेहै और अन्यायकारी राजा को नारा करते है जाति के उदय में (बढने में ) उनकी विचार शाक्त अधिक तेज तीव्र और तीक्षण होजातोहै याने बदनेवाली जाति के खयाल में जादे तेजी तीव्रता और तीक्षणता आजाती है और इसीतरह राजविद्या के अभाव से गिरती हुइ जाती निस्तज होजाती है तीव्रता तीक्षणता जाती रहती है ढीला पन आतिशान घमण्ड कड़वापन अज्ञान मान मद मे चूर अपनी आत्मा को नाश करनेवाला अन्या. य से धनही धन इकट्ठा करता है और अपने आप को उच्च मालिक समजता है मो नाश को प्राप्त होताहै ॥ राजविद्यः योगमाया क्षात्र जातियों में तेज तीव्रता तीक्षणता अन्न धन विभव राजलक्ष्मी विजय आर राज्य देतीहै ।। सदा सर्वदा आत्मा ( जीव ) अनाशवान अजर अमर है वह शुद्ध उच्च और माल कीभाव से दूसरी देह (शरीर) उच्च जाम राज्य पाता रहता है वा युद्ध में शास्त्र
For Private And Personal Use Only