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राजविद्या
[६] काम तेसी बुद्धि । इस लिये बुद्धि कर्मों के अनुसार बहने वाली है। अहम (में) ये अहंकार अभिमान आश्रय है। १२-परंज्ञानम् वा सारज्ञानम्, __ मनसो मोहस्य वाह्येन्द्रियाणां च ज्ञान सर्वेषु स्थावर जंगमेषु विद्यते परं मनुष्येषु जितेन्द्रियत्वम् क्षमा दया सज्जनः सहः प्रीतिः निर्लोभ दानं भयशोकहारः मैत्री करुणांच सर्व भूतेसु धर्यम् सुमतिः श्रद्धा सत्यं सारं ज्ञात्वा ऽद्वेष शुद्ध भावना धारणा चाधिकाः।
भाषार्थ १२ परंज्ञान वा सारज्ञान-मन मोह और बा. हिर इन्द्रियों का ज्ञान समस्त चराचरों में पाया जाता है परन्त मनुष्यों में जितेइन्द्रियपन्न क्षम दया-सजनों के साथ प्रीति-निर्लोभ दान-भयशोक को छोडना मित्रता-करुणा समस्त प्राणियों से
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