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राजविद्या।
[१३]
सुपात्र को दान देने मे बड़ा भारी उत्साह रखे। जूवका कार्य शक्त वर्जित है । स्वतन्त्रता के साथ (आजादी से ) राजा प्रजा आपस में मिलते रहै । लोक संग्रह करना राज्य है ज्ञान संग्रह करना ब्रह्म है धन संग्रह करना वाणिज्य है और परिचर्यात्म सेवा है ।।
राजा-प्रकृतिः रञ्जनादिति राजाराजा एतज्जगतां वृद्धि हेतुःप्राज्ञापाण्डिः ता बुधा जगदनुभावुका स्वजातेः निज स्वामीनःसुभचिन्तका वृधाभिःसंगतः। संततं राजा प्रजानां वृद्धिरुपायं संसाधयेत् । राजा सर्वभूतोपकारार्थम् । सर्वभूत हितरतः। सर्व धर्मकार्येषु सहा. यता दुष्कृतेषुदण्डः । राज्ञां विचार शक्ति संप्रसारणं प्रयोजनं शुद्धोच्चेश्वर भावैः धर्मेण यथा योग युक्तेन जगद्धि.
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