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राजविद्या। करके, हमेस राजा प्रजावों की वृद्धि के उपाय करता रहे । राजा सब प्राणियों के उपकार के वास्ते है । सब प्राणियों के हित मे प्रीति रखे । सब धर्म कार्यों मे सहायता दता रहे और दुष्कृ. तों को दण्ड देवे । राजावों का विचार बल बदने से प्रयोजन शुद्ध भाव उच्च भाव और मालकी भावों करके धर्म से यथायोग युक्ति से जगत हित के वास्ते रक्षान्याय करे और रक्षा न्याय से मतलब प्रजावों मे सुख शान्ति स्थिति
और प्रबन्धों की स्थिरता है और निरोग संपति सौभाग्य और आयुस का बदना है सब प्रबन्धों को देखना चाहिये । ज्ञान के सार को देखना । सर्वोपरी राजविद्या के उपदेश में परिपूर्ण हो । वीर सुभटों का मस्तक राजा है। प्रजा का प्यारा राजा बोत काल तक राज्य करते हैं। प्रात समय शरीर आत्मा की शुद्धि करे-शरीर शुद्धि के अर्थ स्नान है इसी तरह आत्म शुद्धि के वास्ते सर्व शक्तिमान ईश्वर की आराधना
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