________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(४२)
राजविद्या।
स्थान में आकर के शत्रुवों से छुटकर राजविद्यानु. सार युद्ध करता है सो विजय राजलक्ष्मीको पाता है राजविद्या क्षत्रियों के लिय विजय राजलक्ष्मी उनके घरों में सदा स्थिर रहती है ।।
विधम दुराचरणः सहः संग्रामे यथा संभव यथा शक्नोति शत्रुपक्ष भेद. नं वा यथा युक्तेन संहतानां पृथ पृथ करणम् वा भिनात्मसात्करणम् (लो. भराजत्सुवादि) शत्रु स्व पक्षान्कर व्यवहारेण वर्त्तयति तं स्वकरणम् बा पृथग्करणम् वैरी ग्रस्तारम् तमभ्यु. स्थानम् तथैव स्वपक्षषु सानुभूति पर. स्पर प्रीतिरेक्यता सहायता वीरशब्दै. वाक्येरुतेजित्करणमुत्साह संवृधनम् ॥
( भाषार्थ ) विधर्मी दुराचरणों के सात संग्राम में जहां
For Private And Personal Use Only