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राजविद्या।
[२७] वों में कार्योत्साह यथा योग युक्तियों से आपस में सब का राजी रहना है । सब बल बुद्धि और गुण पृथक पृथक मिश्रत भाव से मंसार के स्त्री पुरुषों में बटा हुवा है । बल बुद्ध स रक्षा और न्याय करना और रक्षा न्याय से राज्य है। राज्य करने की इच्छा वाला प्रजा से स्वतन्त्रता से मिलता रहै । रक्षा न्याय मे हुकम के याने राज्य करने के कामों में पृथिवी की पेदाम प्राप्त करने मे और सब प्रबन्ध कार्यों में वीर सुभट क्षत्रियों को नियत करना चाहिये । राजा स संतुष्ट प्रजा राजावों का सब धा बल और सब कुछ है । प्रजा ही राजावों का परम मित्र है और इसी तरह राजा भी याद द । धर्म न्याय और परोपकारों से आपम का वर्ताव रहे । शुद्ध भावना से अधिक उपकार के सामने थाड़े अपकार को न देखना चाहिय । अपने मित्र भी और उपरी राज्य के कर्म चारियों के मित्र भाव से भी उनके अधिकार मे न होना चाहिये और
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