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राजविद्या। [२६] अवस्था प्रबन्धों की स्थिति है । अहिंसा से आयुस बढनी है वर आशीषों से शुद्ध संतति का उप्तन्न (जन्म ) होना है धर्म से धन और सुख है पुरुषार्थ से मान प्रतिष्ठा स्थिति और आधार है और सदाचार से स्वस्थः स्थितं स्थिराम् (अच्छी रहन सहन ठाउ अटल ) मन अन्न धन और सत्कारों से अपने देशी वीर सुभटों को तथा बुद्धिमान सद्विद्या युक्तों को अपना करना तथा दीन प्रजाकी पालना करना परिश्रम पुरुषार्थ युक्त करना और दुष्टों को दण्ड देना सो राज्य सुस्थिर है अचल है और ध्रुव है ।।
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