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राजविद्या। आप उप के च बुद्धिों के भेद को प्रकाश नवा चहिये जो कात्र होजाय तो महा हामि कर शक्ते है । प्रत्येक म वा सबों मे अति प्रवत न होना चाहिये । हरेक काम की मीमा न उलंघना चाहिये । जन्नु उपजन्तु प्रजाजनों में उपकारा स उनकी आशीर्षे तिन करके अधिका. धिक जन संख्या वा समूहों का अधिपति वही उच्च अधिपति है। हमेसां आशीष हाय परोपकार सुकृत दुष्कृतों को उपरी राजा प्रभू देखता है। राजविद्या राज गुह्य का महतत्त्व सर्वोपरी उप. देश को जान्ता हुवा धर्म से रक्षा न्याय से प्रजा पालन करना वह राजा अखण्ड निष्कण्टक सुख सहित बहोत बरमों तक राज्य करता है। स्वार्थ सुख भोग धर्य की साम्य अवस्था अहिंमा आगोष, धर्म रुषार्थ और सदाचरणों से सुख को साम्य अवस्था वही सुख हमेसका है स्वार्थ की साम्य अवस्था शान्ति है भोगों की साम्य अवस्था स्थिति परंपरा है और ऐश्वर्य की साम्य
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