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राजविद्या।
[११] स्परम् । लोक संग्रहं राज्यम् । ज्ञानं संग्रहं ब्रह्मः । धनं संग्रहं वाणिज्यम् । परिचयात्मक सेवा ॥
भाषार्थ-प्रथमाशक्षा-राजविद्या के शब्द वाक्यों का अर्थ प्रकाश कीया जाता है और संज्ञा संकेत और संक्षेप (मुख्तसर) राजविद्याविद्यावों की राजा वा राजवों की विद्या सर्वोपरी प्रथम उपदेश राज्य शासन की शक्ति सिखाता है जिस्से प्रजावों को सत्य मारग पर चलना। सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण की साम्य अ. वस्था वा शुद्धि तिस करके शुद्ध उच्च और मालकी भावों से शुद्ध धारणा को अवलंब करना जिस करके बल बुद्धि का विशुद्ध ज्ञान की प्राप्ती होती है जिस्से रक्षा न्याय और इन दोनु से जगत् का सुख शान्ति स्थिति और प्रबन्धों की स्थिरता है और निरोग संपति सौभाग्य और आयुस
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