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राजविद्या |
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[ ३४ ]
त्यादि भावेनाऽपरिहार्येऽयै वार्त
चक्रम् ॥
भाषार्थ
हरा नित्य अस्त्र शस्त्रों का अभ्यास इसी तरह राजाद्यपेदश शुनना जिससे बल बुद्धि जिसमे रक्षा न्यायः न द ेनुही दृढता १७ कर्म है 9 जितेन्द्रिय २ आलस्य रहित ३ सत्यम ४ एक पत्नि ५ शौर्य ६ युद्ध में स्थिर ७ दान देना ८ माल की भाव ९ खोटे व्यशनों से दूर रहना १० तेज ११ क्षमा १२ रक्षा न्याय को संभालना १३ प्रजासे मिलतेरहना पालना १४ सार बात को जानना १५ अपने इष्ट में प्रीति ( प्रेम ) १६ सत्संगति १७ धीरज इन में प्रवर्ति रखने से पृथिवी अपने आप जाती है उन के घर में निवाश के लिये और उस वंश (कुल) की उन्नति होती है इसी तरह अन्याय से अपना कुटुम्ब बाधु सम्बन्धी अपनी प्रजा दूसरी प्रजा राजा और उपरी राजा
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