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राजविधा ।
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से ईश्वर आराधना उपाशना । ऐश्वर्य ( धनऔर मालकी) की अधिकता से घमण्ड जिस से अपने आप को उच्च समजता हुवा अधिक सुख
जाता है और सद्विद्या के उपदेश में हानि होती है जिससे दुर्घटन और पतन होजाता है उपाय इसका राजविद्या का उपदेश का प्रवन्ध है जिससे राजा असली बात से चलायमान नहीं होता है ||
रक्षा का - प्रजानां शरीर प्राण स्वातं त्र्यं द्रव्यंच रक्षणम् जड़चेतन स्थावर जंगम धनानां च ॥
भाषार्थ
रक्षा किसको कहते हैं - प्रजा के शरीर प्राण स्वातंत्र और द्रवकी रक्षा करना औरजड़ चेतन स्थावर जंगम धनों की भी ॥
कोन्यायः वा न्यायेन का प्रयोज नम् प्रजासु स्वस्ति सुखशान्ति स्थिति श्च तेषां प्रबन्धा ॥
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