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राजविद्या। [३१)
भाषार्थ थोड़ी घणी कम जादा जमीन को मालकी क्षत्रि. को जातिकी स्थिति परंपरा है और यहा उपरी राजावों की परंपरा स्थिरता तनखा से वा नौकरी से वा और तरह से नहीं है । जमीनार अधिकार ( मालकी ) मालकी भाव ज.ति अभिमान से राज्य अच्छा स्थिर अवल और ध्रुव रहता है और उनकी शक्ति (बल) को दृढ बनाता है यही उपरि राजावों के रिये हस के सिवाय और ताह दुर्घटन पतन होताहुवा शनैः शनैः नाशको प्रातहोजाता है परिणाम उपरी राज्य निर्मूल ह कर भ्रष्ट हो जाता है इस में सन्देह नहीं है ।।
प्रातोदने शस्त्रास्त्राणामभ्यासः तथैवस.जावधापदश श्रणुयात ताम्यां बल बुद्धि तामा रक्षान्यायः तयोही ढसप्तदशकर्मा-जितद्रिय वपालस्य रहितं सत्यमेको पताने शौर्य समरेस्थिरः
म्यूर
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