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राजविद्या ।
संपति शासन ( राज्यम् ) सातोंकी चाद्ध मेरी आज्ञा है इसी तरह इन में हानि करने वारेको में मूल से नाश करदेताई इसमें संशय नहींहै मेरी आंग्वे सबको देखती है इसयोग को जान्ता हुवा राज्य को पाता है और उसका राज्य सुस्थिर अचल ध्रुव ( अटल ) और सुदृढ होजाता है ॥
न्यूनाधिकांशतयाऽयाल्पकाधिक्यं पृथिवी पतित्वं क्षात्र जातिनां परंपरा स्थिाति । सेवापरि राज्ञां। परंपरा स्थि तिः नकदापि वेतन वाऽन्यथा । पृथिवी पतित्वमेश्वरभावः जात्याभमानः सुस्थि रमचलं ध्रुवम् तेषां शक्ति दृढ मुपरी राज्ञामाप तथैवच वाऽन्यथा दुघट: पतनं शनैः शनैः विनाशनं प्रगामे उप राज्य निमूलं भूत्वा असति न संशय
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