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राजविद्या।
भाषार्थ
त्रिगुणात्मिक माया कौसृष्टियोंमें उत्थान पतन संख्या संज्ञा और संकेतों से दिखलाये जाते हैं। संख्या १ प्रथम सूर्य को साक्षि करके मैं अस्त्र शस्त्रों का अभ्यास करता हूँ हमेस (नित्य ) हे शक्तिः मेरे घर में निवाश करो जिन से स्वरित सुख संपति और वृद्धि हो बल प्रताप और पराक्रम संकेत सूर्य। संज्ञा प्रथम ॥ संख्या २ द्वितिय चन्द्रमाको साक्षि कर के में सर्वोपरि राजविद्या का अभ्यास करता हूं नित्य हे सुमति मेरे घरम निवश करो जिससे शान्ति स्थिति परंपरा विभूति
आयुसका बदना हो । सुमति बुद्धिः राजलक्ष्मी। संकेत चन्द्रमा संज्ञा द्वितिय । संख्या तिसरा जहां राजविद्या का उपदेशहो ? जहां प्रतिदिन अस्त्र शस्त्रों का अभ्यास हो २
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