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गाथा ५६-६० ] लब्धिसार
[ xe उदाहरण-कर्मस्थिति ४८०० समय । एकसमयाधिक दो प्रावलि (१६४२ +१)=३३ समय । ४८००-३३-४७६७ उत्कृष्ट निक्षेप' ।
अब घ्याघातापेक्षा उत्कृष्ट प्रतिस्थापनाका कथन करते हैंउक्कस्सविदि बंधिय मुहुत्तमंतेण सुज्झमाणेण । इगिकंडरण पादे सम्हि य चरिमस्स फालिस्म ॥५६।। चरिमणिसेमोक्काई जेठमदित्थावणं इदं होदि । समयजुदंतोकोडाकोडि विणुक्कस्सकम्मठिदी ॥६॥
अर्थ-उत्कृष्टस्थितिको बांधकर अन्तर्मुहूर्तके द्वारा विशुद्ध होता हुआ, अंतःकोड़ाकोड़िसागरप्रमारग स्थितिके अतिरिक्त शेष सम्पूर्ण उत्कृष्टस्थितिका एककांडकघातके द्वारा घात करनेवालेके कांउककी चरिमफालिके चरमनिषेकके अपकर्षितद्रव्यको उत्कृष्टप्रतिस्थापना समयाधिक ग्रन्तःकोड़ाकोड़िसागरसे होन उत्कृष्टकर्म स्थिति होती है।
विशेषार्थ-स्थितिका घात करते हुए जिसने स्थितिघात करने के लिये उत्कृष्टकांडकको ग्रहण किया है, उसके उत्कृष्ट प्रतिस्थापना होती है ।
शंका-उत्कृष्टकांडक कितना है ?
समाधान-जितनी उत्कृष्टकर्मस्थिति है उसमेंसे अन्तःकोड़ाकोडिसागर कम कर देनेपर जो स्थिति शेष रहे उतना उत्कृष्टस्थितिकांडकघात होता है। इस स्थितिकांडकको प्रारम्भ करनेपर उत्कीरणकाल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण होता है और प्रतिसमय होनेवाले घातसे सम्बन्ध रखनेवाली स्थितिकांडकसम्बन्धी फालियां भी उतनी ही होती हैं अर्थात् अन्तर्मु हर्तके जितने समय होते हैं उतनी ही कांडककी फालियां होती हैं। उसकांडकमें से प्रथमसमयमें जो प्रदेशाग्न उत्कीरण होते हैं उसकी प्रतिस्थापना एकावलिप्रमाण होती है, क्योंकि कांडकरूपसे ग्रहण की गई इन सर्व स्थितियोंका अभी अभाव नहीं होनेसे इनका व्याघात नहीं होता इसलिए यहांपर भी नियतिविषयक अतिस्थापना होती है। इसप्रकार द्विचरमसमयवर्ती अनुत्कीर्ण स्थितिकांडकके प्राप्त होनेतक ले जाना चाहिए, क्योंकि कांडकरूपसे ग्रहण की गई इन सर्व स्थितियोंका
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ज. प. पु. ८ पृ. २५२ ।