________________
लब्बिसारी
[bay
माथxj एककमाईकया गया है उसको त्रिभागमें मिला देनेपर जघन्यनिक्षेप होता है और एककम आबलि का भागप्रमाण जघन्य प्रतिस्थापना होती है जो जघन्यनिक्षेपके दूनेसे दो समयकम है। .. __-
मालदाहरण- पावलिका प्रमाण १६ समय है। (१६-१)=१५; १५:३= .. ५; +१=६ जघन्यमिक्षेप' है । १६-६=१० समय जघन्यप्रतिस्थापना है। . ..
एत्तो समऊणावलितिभागमेत्तो तु तं खणिक्खेवो । - उर्ति वलिवज्जिय सगद्विदी होदि णिक्खेवो ॥५७॥
मा अर्थ- इस प्रथम निषैकसे ऊपर एकसमय कमावलिके त्रिभागतकके निषेकोंके अपकृाठव्यका निक्षेप तो पूर्वोक्त ही हैं। इससे ऊपर अतिस्थापनारूप प्रावलिको छोड़कर अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण निक्षेप होता है । '
में विशेषार्थ-उदयावलिसे बाह्य अनन्तर प्रथमस्थितिसे ऊपर अनन्तरसमयवर्ती द्वितीयस्थितिके अपकर्षितव्यका उतना ही निक्षेप होता है, क्योंकि इसमें कोई भेद नहीं है, किन्तु प्रतिस्थापना 'एकसमय अधिक होती है, चूं कि 'उदयावलिके बाहर की स्थिति भी प्रतिस्थापना में मिलगाई हैं । इसप्रकार प्रतिस्थापनामें उदयावलिके बाहरसे जघन्यनिक्षेपप्रमान स्थितियों के प्रविष्ट होनेतक निक्षेपको अवस्थितरूपसे ले जाना चाहिए और प्रतिस्थापनाको उत्तरोत्तर एक-एकसमयअधिक क्रमसे अनवस्थितरूपसे ले जाना चाहिए। यहां जो स्थिति प्राप्त होती है उसकी प्रतिस्थापना. पूर्ण एकावलिप्रमाण है तथा निक्षेप जघन्य ही रहता है. .. .:...::.:
शंका-जिसस्थिति विशेषके प्राप्त होनेपर प्रतिस्थापना पूरी एकावलिप्रमाण । होती है, वह स्पितिविशेष किसस्थान में प्राप्त होता है ?
समाषाम-उदयावलि के बाहर प्रावलिके तृतीयभागकी. जो यतिस्थिति है,.... वहां वह स्थितिविशेष प्राप्त होता है'। ( यहां अन्तिम स्थितिसे 'तदनन्तर उपरिम स्थिति विशेष ग्राह्य है।..... . . . . । ..
३.
ज. प. पु.८ पृ. २४५ ।