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४.४६ - सब्धिसार
{ "E HAI ५६ ...... - शंका-विशेषका प्रमारण कितना है ?
.. समाधान---अनिवृत्तिकरणकालके संख्यातवेंभाग विशेषका प्रमाण है। i. :: .. नोट-जिन निषेकों में गुणाकार क्रमसे अंपकर्षितद्रव्य निक्षेपित किया जाता । है अर्थात् दिया जाता है उन निषेकोंका नाम गुणश्रेणिनिक्षेप है उन निषेकोंकी संख्याका • प्रमाण गुणश्रेणीमायाम है ।। ... अथानन्तर निक्षेप व अतिस्थापनाले स्वरूप-मैद-प्रमाणादिका कथन करते हैं
णिक्वेवमदित्थावणमवरं समऊणश्रावलितिभागं । .
..तेणणावलिमेत्तं , विदियावलियादिमणिसेगे ॥५६॥ .: ...: अर्थ-द्वितीयावलिका प्रादिनिषेक अर्थात् उदयाबलिसे अनन्तर उपरि मनिषेक में से द्रव्य अपकर्षितकरके नीचे उदवावलिमें देता है तब एकसमयकम भाव लिका विभाग तो जघन्यनिक्षेप है तथा प्रावलिके शेषनिषेक जघन्यप्रतिस्थापना है ।
विशेषार्थ-जो स्थिति अभी उदयावलिके अन्तिमसमयमें वर्ष नहीं हुई है, ....किन्तु अनन्तर अगले समय में प्रविष्ट होनेवाली है. उसके निक्षेप और प्रतिस्थापना सर्व
जघन्य हैं । स्पष्टीकरण इसप्रकार है-उस स्थितिका अपकर्षणं करके, उदयसमयसे "लेकर आवंलिके तृतीय भागतकं उसका निक्षेप करता है और ३ भागप्रमाण ऊपर के
हिस्सेको प्रतिस्थापनारूपसे स्थापित करता है । इसलिए प्रावलिका तुतीयभाग उम - अपकषितस्थितिके निक्षेपका विषय है और आबलिका भाग प्रतिस्थापना है।
शंका-प्रावलिकी परिगणना कृतयुग्म संख्यामें की गई अतः उसका तृतीयभाग कैसे ग्रहण किया जाता है ? ....... समाधान-प्रावलिका प्रमाण जघन्ययुक्तासंख्यात है, अतः श्रावलिको परि
गणना कृतयुग्मसंख्यामें की गई है, (जी संख्या ४ से पूर्णरूपेणं विभाजित हो जावे वह :-'कृतयुग्म' संख्या है इसलिए उसका शुद्ध तीसराभाग नहीं हो सकता अतः प्रावलिसे एककम करके उसका तृतीयभागः ग्रहण करना चाहिए । अब यहां प्रावलिमें से जो
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१. ज. प. पु. ८ पृ. २४३-४४। २. ध. पु. १२ प्रस्तावना पृ. ३; घ. पु. १४ पृ. १४७; ध. पु. १२ पृ. १३४; भगवतीसूत्र लो. प्र.
१२१७६; प. पू. ३ प. २४६; घ. पु १० प्रस्तावना पृ. ३; क. पु. १०-मूल पृ: २२-२३ । ..