________________ हैं, उनके चित्र निकलते हैं और वे सब आकाश में फैल जाते हैं। हम बोलते हैं। भाषा के पुद्गल आकाश में फैल जाते हैं और वे हजारों-हजारों वर्षों तक उसी रूप में बने रहते हैं। यही तो आधार बनता है अतीत की यात्रा का। यही चौथे आयाम का आधार बनता है। ___आज हम अपनी चेतना को विकसित करें, अवधिज्ञान और मनःपर्यवं ज्ञान का विकास करें, जिससे कि हजारों वर्ष पहले के शरीर की आकृतियों को देख सकें, उसे साक्षात् कर सकें। हजारों-हजारों वर्ष पहले की जो चिंतन की प्रतिकृतियां हैं, उनको देखकर हम उन विचारों को जान सकें। हजारों-हजारों वर्ष पहले बोली गई भाषा की जो वर्गणाएं हैं, भाषा के जो पुद्गल हैं, उन पुद्गलों को हम सुन सकें। हम देख सकें और पढ़ सकें कि ये भाषा की प्रतिकृतियां हैं, ये मन की प्रतिकृतियां हैं और ये शरीर की प्रतिकृतियां हैं। चेतना के विकास के द्वारा यह संभाव्य है। ऐसा भी संभव है कि कोई वैज्ञानिक सूक्ष्मतम यंत्रों का आविष्कार कर, उनके माध्यम से यह संभव बना सके। वैज्ञानिक जगत् में यह प्रयत्न चल रहा है कि राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध आदि-आदि महापुरुषों की वाणी के पुद्गलों को पकड़कर हम उन्हें साक्षात् सुनें। प्रयत्न चल रहा है। सफल कब होंगे-यह कहा नहीं जा सकता। पर ऐसा होना संभव है। यह असम्भव बात नहीं है। संभव है, क्योंकि आधार निश्चित है। जब भाषा मौजूद है तो प्रश्न भाषा का नहीं रहा, प्रश्न उसे पकड़ने का रहा। यदि हमें पकड़ने का अच्छा माध्यम मिल जाये तो हम शब्दों को सुन सकते हैं, आकृतियों को साक्षात देख सकते हैं। आत्मा को नहीं देख सकते, किन्तु उन महापुरुषों के शरीर की आकृतियों को देख सकते हैं। उनके द्वारा जो सोचा गया था, जो कहा गया था, उसे जान सकते हैं, पढ़ सकते हैं। इसी प्रकार कर्म के जो परमाणु हैं, जो आत्मा के साथ संबंध स्थापित करते हैं और विपाक के बाद वापस चले जाते हैं, वे भी आकाश में भरे हुए हैं। उनके आधार पर भी यह निर्णय लिया जा सकता है कि इस व्यक्ति का यह विपाक है तो इसने अतीत में क्या किया था और किस प्रकार कितनी मात्रा के राग-द्वेष के द्वारा, इन पुद्गलों के द्वारा, 24 कर्मवाद