________________ की हैं। मैं मानता हूं, कर्मवाद की जो व्याख्याएं अस्पष्ट थीं, वे आज मनोविज्ञान के संदर्भ में समझी जा सकती हैं। मनोविज्ञान ने सचमुच बहुत बड़ा उपकार किया है। मेरी यह धारणा बन गई है कि कर्मवाद को समझे बिना मनोविज्ञान को पूरा नहीं समझा जा सकता और मनोविज्ञान को समझे बिना कर्मवाद की पूरी व्याख्या नहीं की जा सकती। कर्मवाद को समझने के लिए मनोविज्ञान को समझना बहुत जरूरी है और मनोविज्ञान को समझने के लिए कर्मवाद को समझना बहुत जरूरी है। दोनों में गहरा सम्बन्ध है। मनोविज्ञान ने व्यक्तित्व की और व्यक्ति के अन्तर्मन तथा अवचेतन मन और अर्द्धचेतन मन की जो व्याख्याएं की हैं, वे कर्म के द्वारा ही घटित होती हैं। कर्म हमारे समूचे व्यक्तित्व को प्रभावित करता है। अर्थ-व्यवस्था को बदल देने, गरीबी को समाप्त कर देने और गरीब और अमीर के भेद को कम कर देने से क्या ऐसा हो गया कि रूस और चीन में कोई आदमी गुस्सा नहीं करता, कोई अभिमान नहीं करता, राग और द्वेष नहीं करता, प्रियता और अप्रियता की अनुभूति नहीं करता? व्यक्तिगत स्वामित्व की व्यवस्था होने पर भी क्या कोई बेईमानी नहीं करता? भ्रष्टाचार नहीं करता? अप्रामाणिकता और भ्रष्टाचार वहां कम अवश्य हुए हैं, पर समाप्त नहीं हुए हैं। बड़े-बड़े अधिकारी भी आर्थिक घोटाले करते हैं। यह सोवियत कांग्रेस और चीन की राष्ट्रीय रिपोर्टों के अध्ययन से ज्ञात होता है। जहां मरने के बाद बाप की संपत्ति बेटे को नहीं मिलती, वहां कोई आर्थिक घोटाला किसलिए करे-इस प्रश्न के उत्तर में यही कहा जा सकता है कि व्यक्ति का स्वभाव नहीं बदलता, मनोवृत्ति नहीं बदलती। और इसलिए नहीं बदलती कि परिस्थिति बदल जाने पर भी जिनके अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के स्राव और उसको प्रेरित करने वाले कर्म के स्राव नहीं बदलते, वहां स्वभाव नहीं बदलता, आचरण और व्यवहार नहीं बदलता। मनुष्य का आन्तरिक व्यक्तित्व जो है, वह सारा कर्म से प्रभावित होता है, कर्म के द्वारा संचालित होता है। कर्म के आन्तरिक संचालन को जब हम पदार्थ के साथ जोड़ देते हैं, वहां हमारी भ्रान्ति बढ़ जाती है। सामाजिक व्यवस्था का एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करना चाहता हूं। वह ऐसी व्यवस्था का निर्देशन है, जैसी व्यवस्था समाजवाद में कर्मवाद का मूल्यांकन 276