________________ अर्थ-व्यवस्था का समाजवाद होता है और एक विकेन्द्रित अर्थ-व्यवस्था का समाजवाद होता है। समाजवाद का एक उद्देश्य है कि समाज के सब लोगों के पास सम्पदा पहुंचे। कहीं एक जगह सम्पदा जमा न हो। उस सम्पदा पर व्यक्तिगत स्वामित्व न हो, किन्तु समाज का स्वामित्व हो। समाज के सभी लोग सम्पदा को बांटकर उपभोग करें। इस सिद्धांत के आधार पर समाज की नींव खड़ी की गयी। विकेन्द्रित अर्थ-व्यवस्था का नाम भी समाजवाद है और केन्द्रित अर्थ-व्यवस्था का नाम भी समाजवाद है। किन्तु दोनों में थोड़ा अन्तर है। जहां अर्थ-व्यवस्था केन्द्रित होती है वहां शक्ति का प्रयोग अनिवार्य होता है। शक्ति के प्रयोग के बिना कोई भी व्यक्ति अपनी सम्पदा को छोड़ना नहीं चाहता। कुछ लोग छोड़ सकते हैं जिनके मन में धर्म की चेतना जागृत हो। जिनके मन में धर्म की चेतना, अपरिग्रह की. चेतना जागृत नहीं है, वे व्यक्ति अपना प्रभुत्व छोड़ना कभी पसन्द नहीं करते। इसलिए केन्द्रित अर्थ-व्यवस्था के प्रशासन में यह अनिवार्य हो जाता है कि शक्ति के प्रयोग के द्वारा सम्पदा छीनी जाए और वह सम्पदा राज्य के कोष में आए, उसका उपयोग समूचे समाज के लिए किया जाए। ___केन्द्रित अर्थ-व्यवस्था में शक्ति का प्रयोग अनिवार्य है और हिंसा का प्रयोग भी अनिवार्य है। क्योंकि जो कार्य बल-प्रयोग के द्वारा किया जाता है, वहां हिंसा को कभी टाला नहीं जा सकता, छीना-झपटी को भी कभी टाला नहीं जा सकता। उसमें स्पर्धा भी अनिवार्य होती है। नैतिकता की बात गौण हो जाती है। केन्द्रित अर्थ-व्यवस्था में नैतिकता का मूल वह नहीं रहता जो विकेन्द्रित अर्थ-व्यवस्था में हो सकता है। जो लोग अहिंसा और धर्म की दृष्टि से सोचते हैं वे इस केन्द्रित अर्थ-व्यवस्था को पसन्द नहीं करते। . केन्द्रित अर्थ-व्यवस्था में आदमी सुखी जीवन नहीं बिता सकता। क्योंकि आदमी को केवल रोटी ही नहीं चाहिए, कुछ और भी चाहिए। विचारों की स्वतन्त्रता भी चाहिए, कर्म की स्वतन्त्रता भी चाहिए। किन्तु जहां केन्द्रित सत्ता और केन्द्रित अर्थ-व्यवस्था होगी वहां वैचारिक स्वतन्त्रता नहीं हो सकती और कर्म की स्वतन्त्रता भी नहीं हो सकती। उस व्यवस्था विकेन्द्रित अर्थ-व्यवस्था और कर्मवाद 261