Book Title: Karmwad
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 313
________________ अनुकूलन (Conditioning) से सीखता है। धीरे-धीरे शाब्दिक आदतें (Verbal Habits) पक्की हो जाती हैं और वे शाब्दिक उद्दीपकों (Verbal Stimuli) से उद्दीप्त होने लगती हैं। बच्चों की शाब्दिक प्रतिक्रियाएं श्रव्य होती हैं। धीरे-धीरे सामाजिक परिवेश के प्रभाव से आवाज को दबाकर शब्दों को कहना सीख जाता है। व्यक्त तथा अव्यक्त शिक्षा-दीक्षा के प्रभाव से शाब्दिक प्रतिक्रियाएं मौन हो जाती हैं। वॉटसन ने चिन्तन को अव्यक्त अथवा मौन वाणी (Implicit or Silent speech) कहा है। सत्य में कोई द्वैत नहीं होता। किसी भी माध्यम से सत्य की खोज करने वाला जब गहरे में उतरता है और सत्य का स्पर्श करता है, तब मान्यताएं पीछे रह जाती हैं और सत्य उभरकर सामने आ जाता है। बहुत लोगों का स्वर है कि विज्ञान ने धर्म को हानि पहुंचाई है, जनता को धर्म से दूर किया है। बहुत सारे धर्म-गुरु भी इसी भाषा में बोलते हैं। किन्तु यह स्वर वास्तविकता से दूर प्रतीत होता है। मेरी निश्चित धारणा है कि विज्ञान ने धर्म की बहुत सत्यस्पर्शी व्याख्या की है और वह कर रहा है। जो सूक्ष्म रहस्य धार्मिक व्याख्या-ग्रंथों में अ-व्याख्यात हैं, जिनकी व्याख्या के स्रोत आज उपलब्ध नहीं हैं, उनकी व्याख्या वैज्ञानिक शोधों के सन्दर्भ में बहुत प्रामाणिकता के साथ की जा सकती है। कर्मशास्त्र की अनेक गुत्थियों को मनोवैज्ञानिक अध्ययन के सन्दर्भ में सुलझाया जा सकता है। आज केवल भारतीय दर्शनों के तुलनात्मक अध्ययन की प्रवृत्ति ही पर्याप्त नहीं है। दर्शन और विज्ञान की सम्बन्धित शाखाओं का तुलानात्मक अध्ययन बहुत अपेक्षित है। ऐसा होने पर दर्शन के अनेक नये आयाम उद्घाटित हो सकते हैं।

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