Book Title: Karmwad
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 311
________________ इनकी तुलना की जा सकती है। मोहनीय कर्म के विपाक मल सवेग 1. भय भय 2. क्रोध क्रोध 3. जुगुप्सा जुगुप्सा भाव-विकर्ष भाव 4. स्त्री वेद 5. पुरुष वेद कामुकता 6. नपुंसक वेद 7. अभिमान स्वाग्रह भाव, उत्कर्ष भावना 8 लोभ स्वामित्व भावना, अधिकार भावना 6. रति उल्लसित भाव 10. अरति दुःख भाव मनोविज्ञान का सिद्धांत है कि संवेग के उद्दीपन से व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है। कर्मशास्त्र के अनुसार मोहनीय कर्म के विपाक से व्यक्ति का चरित्र और व्यवहार बदलता रहता है। ___प्राणी जगत् की व्याख्या करना सबसे जटिल है। अविकसित प्राणियों की व्याख्या करने में कुछ सरलता हो सकती है। मनुष्य की व्याख्या सबसे जटिल है। वह सबसे विकसित प्राणी है। उसका नाड़ी-स्थान सबसे अधिक विकसित है। उसमें क्षमताओं के अवतरण की सबसे अधिक सम्भावनाएं हैं। इसलिए उसकी व्याख्या करना सर्वाधिक दुरूह कार्य है। कर्मशास्त्र, योगशास्त्र, मानसशास्त्र (साइकोलॉजी), शरीरशास्त्र (एनेटोमी) और शरीरक्रियाशास्त्र (फिजियोलॉजी) के तुलनात्मक अध्ययन से ही उसको कुछ सरल बनाया जा सकता है। . मानसिक परिवर्तन केवल उद्दीपन और परिवेश के कारण ही नह होते। उनमें नाड़ी-संस्थान, जैविक विद्युत्, जैविक रसायन और अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के स्राव का भी योग होता है। ये सब हमारे स्थूल शरीर के अवयव हैं। इनके पीछे सूक्ष्म शरीर क्रियाशील होता है और उनमें निरन्तर होने वाले कर्म के स्पंदन परिणमन या परिवर्तन की प्रक्रिया को चालू .' रखते हैं। परिवर्तन की इस प्रक्रिया में कर्म के स्पंदन, मन की चंचलता, कर्मशास्त्र : मनोविज्ञान की भाषा में 301

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