Book Title: Karmwad
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 307
________________ कर्मशास्त्र : मनोविज्ञान की भाषा में दर्शन के क्षेत्र में शाश्वत और अशाश्वत-दोनों चर्चनीय रहे हैं। इन दोनों के तीन रूप उपलब्ध होते हैं-शाश्वतवाद, अशाश्तवाद और शाश्वत-अशाश्वतवाद। जैन दर्शन ने तीसरा विकल्प मान्य किया। जगत् में जिसका अस्तित्व है; वह केवल शाश्वत नहीं है, केवल अशाश्वत नहीं है। शाश्वत और अशाश्वत, दोनों का सहज समन्वय है। तत्त्व की दृष्टि से जो सिद्धांत है, उस पर मैं काल-सापेक्ष विमर्श करना चाहता हूं। - कर्म भारतीय दर्शन में एक प्रतिष्ठित सिद्धांत है। उस पर लगभग सभी पुनर्जन्मवादी दर्शनों ने विमर्श प्रस्तुत किया है। पूरी तटस्थता के साथ कहा जा सकता है कि इस विषय का सर्वाधिक विकास जैन दर्शन में हुआ है। इस विषय पर विशाल साहित्य का निर्माण हुआ है। विषय बहुत गम्भीर और गणित की जटिलता से बहुत गुंफित है। सामान्य व्यक्ति उसकी गहराई तक पहुंचने में काफी कठिनाई अनुभव करता है। कहा जाता है, आइंस्टीन के सापेक्षतावाद के सिद्धांत को समझने वाले कुछ विरले ही वैज्ञानिक हैं। यह कहना भी सत्य की सीमा से परे नहीं होगा कि कर्मशास्त्र को समझने वाले भी संमूचे दार्शनिक जगत् में कुछ विरले ही लोग हैं। ___कर्मशास्त्र में शरीर-रचना से लेकर आत्मा के अस्तित्व तक, बन्धन से लेकर मुक्ति तक-सभी विषयों पर गहन चिन्तन और दर्शन मिलता है। यद्यपि कर्मशास्त्र के बड़े-बड़े ग्रंथ उपलब्ध हैं, फिर भी हजारों वर्ष पुरानी पारिभाषिक शब्दावली को समझना स्वयं एक समस्या है। और * जब तक सूत्रात्मक परिभाषा में गूंथे हुए विशाल चिन्तन को पकड़ा नहीं कर्मशास्त्र : मनोविज्ञान की भाषा में 287


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